संदेश

अभिलाषा

                                          अभिलाषा                                                     डॉ0 साधना अडवानी देखो! देखो! हवाई जहाज आया। दौड़ो! दौड़ो! हवाई जहाज आया।। कितना ऊपर कितना बड़ा। लगता जैसे पक्षी बड़ा।। कौवा उड़ता, चिड़िया उड़ती, तोता उड़ता, मैना उड़ती।    मैं क्यों नहीं उड़ पाता? पतंग उड़ती, गुब्बारा उड़ता, मच्छर उड़ता, मक्खी उड़ती।  मैं क्यों नहीं उड़ पाता? एक दिन विमान चालक बनकर।  मैं भी विमान उड़ा लूँगा।। मम्मी-पापा, चिंकी- पिंकी।  सबको मैं बिठलाऊँगा।। आसमान की सैर कराऊँगा। बादलों को छू कर आऊँगा।। वायु सेना में भर्ती होकर। मैं सैनिक बन जाऊँगा।। दुश्मन भी आप उठा ना सकेंगे। प्राणों की बाजी हम लगा देंगे। मातृभूमि की रक्षा में, हंसते-हंसते शीश चढ़ा देंगे।।

गुलाबजामुन

                                      गुलाबजामुन                                                           डॉ0 साधना अडवानी चमोली को गुलाबजामुन बहुत पसंद थे। दो दिन बाद होली का त्योहार था। उसे पता था 'माँ गुलाबजामुन ज़रूर बनाएगी।' यह सोचकर ही उसकी जीभ लपलपा उठीं थी। अपने मन की बात उसने अपनी प्यारी कोको बिल्ली को कई बार बताई। बिल्ली को क्या समझा, यह नही पता पर उसने भी पूँछ हिलाकर अपनी खुशी व्यक्त की। घर में मिठाई बनाने का सामा आया। माँ ने कहा, "चमोली तुम्हारे लिए गुलाबजामुन बनेंगे। क्या तुम मेरी मदद करोगी?" सुनकर चमोली के अंग-अंग में फुर्ती सी आ गयी। उछ्लती कूदती हुई पहुँची माँ के पास रसोईघर में। "माँ! माँ! मैं आपकी मदद करूँगी तो मुझे ज़्यादा गुलाब जामुन मिलेंगे??" हाँ!हाँ! क्यों नहीं मेरी रानी बिटिया तुम्हारे लिए ही तो बना रही हूँ।" "माँ! मेरी कोको को भी देना" "हाँ ज़रूर दूँगी तुम्हारी कोको को"  म्याऊँ म्याऊँ कहकर कोको ने माँ मो धन्यवाद कहा। माँ के निर्देश पर चमोली ने साबुन से हाथ धोए। साफ़ नैपकिन से हाथ पोंछे ।फ़्रिज से खोवे

राजू और काजू

                              राजू और काजू                                                         - डॉ0 साधना अडवानी छुक छुक छुक करके चलती रेल। कभी ठहरती कभी चलती रेल।। खिड़की के पास बैठा था राजू। सटकर बैठी थी उसकी बहन काजू।। तभी चने मुरमुरे वाले ने चिल्लाया। मूँगफली वाला भी तभी चला आया।। खाने की चीज़ें देख मचलने लगा राजू। न ही कम थी बहन काजू।। दोनों ने दो-दो पुड़िया बनवाईं। मूँगफली खुश होकर खाई।। फिर आया गरम समोसे वाला। आया साथ में केले फलवाला।। देख समोसे और केले। दोनों ने फिर से धूम मचाई।। माता-पिता ने मना किया। पर आफत थी उन्होंने मचाई।। केले और समोसे खाए। फिर भी भूख से तरसाए।। कोल्ड ड्रिंक वाले की पुकार सुन। खुश हुए बहूत ही मन ही मन।। बिना अनुमति की आवश्यकता जान। ठंडक पाकर छेड़ दी होंठों पर मुस्कान।। चलती ट्रेन की खड़खड़-खड़-खड़। मचने लगी पेट में गुड़गुड़-गुड़-गुड़।। माँ ने जब दवा पिलाई। तब जाकर राहत पाई।। बच्चों ने किया माता-पिता से ये वादा। ज़िद करके खाएँगे ना कभी ज्यादा।।